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परा॑ णुदस्व मघवन्न॒मित्रा॑न्त्सु॒वेदा॑ नो॒ वसू॑ कृधि। अ॒स्माकं॑ बोध्यवि॒ता म॑हाध॒ने भवा॑ वृ॒धः सखी॑नाम् ॥२५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

parā ṇudasva maghavann amitrān suvedā no vasū kṛdhi | asmākam bodhy avitā mahādhane bhavā vṛdhaḥ sakhīnām ||

पद पाठ

परा॑। नु॒द॒स्व॒। म॒घ॒ऽव॒न्। अ॒मित्रा॑न्। सु॒ऽवेदा॑। नः॒। वसु॑। कृ॒धि॒। अ॒स्माक॑म्। बो॒धि॒। अ॒वि॒ता। म॒हा॒ऽध॒ने। भव॑। वृ॒धः। सखी॑नाम् ॥२५॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:32» मन्त्र:25 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:21» मन्त्र:5 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:25


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह राजा कैसा हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मघवन्) बहुधनयुक्त राजा (सुवेदाः) धर्म से उत्पन्न किये हुए ऐश्वर्ययुक्त ! आप (नः) हमारे (अमित्रान्) शत्रुओं को (परा, णुदस्व) प्रेरो हमारे लिये (वसु) धन को (कृधि) सिद्ध करो (महाधने) बड़े वा बहुत धन जिसमें प्राप्त होते हैं उस संग्राम में (अस्माकम्) हमारे (सखीनाम्) सर्व मित्रों के (अविता) रक्षा करनेवाले (बोधि) जानिये और (वृधः) बढ़नेवाले (भव) हूजिये ॥२५॥
भावार्थभाषाः - हे राजा ! आप धार्मिक, शूरजनों का सत्कार कर उनको शिक्षा देकर युद्धविद्या में कुशल कर डाकू आदि दुष्टों को निवृत्त कर सर्वोपकारी मनुष्यों के रक्षा करनेवाले हूजिये ॥२५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स राजा कीदृशो भवेदित्याह ॥

अन्वय:

हे मघवन् राजन् सुवेदास्त्वं नोऽस्माकममित्रान् परा णुदस्व नो वसु कृधि महाधनेऽस्माकं सखीनामविता बोधि वृधो भव ॥२५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (परा) (णुदस्व) प्रेरय (मघवन्) बहुधनयुक्त राजन् (अमित्रान्) शत्रून् (सुवेदाः) धर्मोपार्जितैश्वर्यः (नः) अस्माकमस्मभ्यं वा (वसु) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (कृधि) कुरु (अस्माकम्) (बोधि) बुध्यस्व (अविता) रक्षकः (महाधने) महान्ति धनानि प्राप्नुवन्ति यस्मिँस्तस्मिन् सङ्ग्रामे (भव) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (वृधः) वर्धकः (सखीनाम्) सर्वसुहृदाम् ॥२५॥
भावार्थभाषाः - हे राजंस्त्वं धार्मिकाञ्छूरान्सत्कृत्य शिक्षयित्वा युद्धविद्यायां कुशलान्कृत्वा दस्य्वादीन्दुष्टान्निवार्य्य सर्वोपकारकाणां मनुष्याणां रक्षको भव ॥२५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा, तू धार्मिक, शूर लोकांचा सत्कार कर. त्यांना शिक्षण देऊन युद्धविद्येत कुशल करून दुष्टांना निवृत्त कर. सर्वांवर उपकार करणाऱ्या माणसांचे रक्षण करणारा हो. ॥ २५ ॥